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Thursday, July 30, 2020

बूंद हूँ या पत्ता ?

जुलाई ३०, २०२० 


कभी कभी एक सूखा पत्ता भी लिखने की प्रेरणा दे देता है। अपनी चाय के कप के साथ धूप सेकने बाहर बैठी थी कि नीचे कुछ चमकता हुआ दिखा। देखा तो ये बूंदें चमक रहीं थीं। पत्ता तो अपने रंग के कारण पहले स्पष्ट नहीं दिखा। सूखे पत्तों को वैसे भी कहाँ देखते हैं लोग। उसका फोटो लेने के लिए थोड़ा हिलाया और उसी में कुछ बूंदें नीचे गिर गयीं।  

इस पत्ते को देख के लगा जैसे कुछ बोल रहा हो। इसी पत्ते की प्रेरणा से कुछ लिखा है। भाव मेरे और भाषा पत्ते की है।  

बूंद हूँ या हूँ पत्ता ?
आखिर क्या है मेरी सत्ता ?

रोज सुबह ये ओस की नन्ही बूंदे
होती हैं द्युतिमान फिर आंखें मूंदे

गतिशील हुआ मैं लगती ठोकर इनके
मिट जाता है अस्तित्व जैसे हों तिनके

पत्ता तो मैं सूखा का सूखा रह जाता
क्यों इतना था सम्मोह समझ ना आता

फिर नई इन्हीं बूंदों को कल सहलाऊंगा
अपने अस्तित्व पर प्रश्न कभी ना उठाऊंगा

***

Tuesday, February 9, 2016

Nani ko Shradhaanjali

Feb 9, 2016

नानी जी को श्रद्धांजलि

वर्ष २०१६ मौनी अमावस्या को
ले लिया तुमने मौन अनंत
आज तुम्हारे जाने पर
ये मन है थोड़ा खिन्न
शब्दों में ही लिखकर
अब करे याद ये तुमको।

थी गहन आवाज़ तुम्हारी कितनी
सबको करती अनुशासित
सब सोचे था वो कड़कपन
पर हमने देखा चिंता और प्यार।

केश तुम्हारे थे काले कितने
वृद्धावस्था ने भी घुटने टेके थे
सारे नाती पोते भी करते थे
मन ही मन में गर्व उन पर।

पूजा पाठ में ध्यान था कितना
करतीं सबके सुख की कामना
कितनी भी कठिनाई आयीं
पर हार कभी ना तुमने मानी।

इस जीवन में तुम अपने
काम अनेक कर गयीं
मुझको तो बड़े उपहार में
माँ तुम मेरी दे गयीं।

पर अपने ही हंसालय से
तुम आज विदा क्यों ले गयीं?

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