Thursday, June 25, 2020

Fair Isn't Lovely Anymore

जून २५, २०२०

Image from freepik.com

आखिर दशकों बाद अब अमेरिका में हुए जातीय भेदभाव की घटनाओं और ‘Black Lives Matter’ आंदोलन के चलते हिंदुस्तान यूनिलीवर को ये समझ आ गया कि गोरापन सुंदरता का मानक नहीं होता। 'Fair', 'Whitening', 'Lightening' क्रीम जैसे उत्पादों ने भारत में चुपचाप रह कर रंगभेद की आग सालों से सुलगाई है। अब जाकर यूनिलीवर ने ‘Fair & Lovely’ से ‘Fair’ हटाने का निर्णय लिया है। उनके अनुसार वो अब सुंदरता के विविध रूपों को मान देने में अग्रणी भूमिका निभाना चाहते हैं। अकल चरने गयी थी शायद जो भारत में सुंदरता के विविध रूप अब याद आए। आश्चर्य ये है कि अभी भी क्रीम बेचना बंद नहीं करेंगे। 

मैंने ‘Fair & Lovely’ का नाम बचपन से सुना है। सोच रही हूँ घर में शायद आर्थिक तंगी रही होगी वरना हमारी माँ भी ‘Fair & Lovely’ छोड़ दही-हल्दी-बेसन से हमारा रंग न निखारती। एक बार स्कूल के एक कार्यक्रम में मुझे कृष्ण की भूमिका निभानी थी। हमारी शिक्षिका ने आकर अवलोकन किया कि बच्चों ने कुछ श्रृंगार नहीं किया है और हमारे मुँह पर कहीं से लायी ढेर सारी Fair & Lovely क्रीम लगा दी। उसी दिन गोरेपन की गंध कैसी होती है ये पता चला। आज भी सोचती हूँ कि उन्होंने कृष्ण को गोरा बनाने की कोशिश ही क्यों की? 

गोरी चमड़ी का सदियों पुराना प्यार आज भी है शत प्रतिशत बरकरार। पहले केवल एक Fair & Lovely थी पर पिछले दशक में स्थिति यहां पहुंची है कि अब Lakme, Nivea जैसे नामों के whitening version भी बाज़ार में उतर चुके हैं। दोष किसका? गोरों के शासन का या पश्चिम को श्रेष्ठ मानने की विचारधारा का? हर उन माता-पिता का जो आज भी अपने सांवले बेटा/बेटी (?) के लिए गोरे जीवनसाथी की ही अपेक्षा रखते हैं या उस समाज का जो निरंतर गोरेपन को गुणों की खान मान सराहता है?

सौन्दर्य-प्रसाधन का ये व्यापार एकांत में नहीं पलता है। बाहर काले कृष्ण और वेंकटेश्वर की पूजा करने के बाद मन से गोरे रंग के पीछे भागने को पाखण्ड नहीं तो और क्या कहेंगे? 

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